Wednesday, January 9, 2013

प्रधानमंत्री की प्रवासी वैश्विक सलाहकार परिषद की बैठक

उद्देश्‍य विभिन्‍न क्षेत्रों के प्रसिद्ध प्रवासी भारतीयों के ज्ञान और अनुभव का लाभ उठाना
विश्वभर से 13 प्रसिद्ध प्रवासी भारतीयों ने लिया भाग
प्रधानमंत्री डॉक्‍टर मनमोहन सिंह की प्रवासी वैश्विक सलाहकार परिषद की बैठक कल कोच्चि में हुई। विश्वभर से 13 प्रसिद्ध प्रवासी भारतीयों ने इसमें भाग लिया। बैठक में प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री श्री वायलार रवि, वाणिज्‍य और उद्योग मंत्री श्री आनंद शर्मा, विदेश मंत्री श्री सलमान खुर्शीद, मानव संसाधन मंत्री श्री एम.एम. पल्‍लम राजू, योजना आयोग के उपाध्‍यक्ष डॉक्‍टर मोंटेक सिंह आहलुवालिया और केन्‍द्र सरकार के वरिष्‍ठ अधिकारियों ने भी बैठक में भाग लिया। 

बैठक में जिन प्रवासी भारतीयों ने भाग लिया, उनमें श्री करण एफ. बिलीमोरिया, श्री स्‍वदेश चटर्जी, सुश्री इला गांधी, लॉर्ड खालिद हमीद, डॉक्‍टर रेणु खाटोर, श्री किशोर मधुबनी, श्री एल.एन. मित्‍तल, लॉर्ड भीखु छोटालाल पारेख, श्री सैम‍पितरोदा, तान श्री दातो अजीत सिंह, श्री नेविले जोसफ रोस, प्रोफेसर श्रीनिवास एस.आर.वर्धन और श्री युसूफाली एम.ए. शामिल थे। 

बैठक में प्रतिभागियों ने महत्‍वपूर्ण अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्दों और भारत पर होने वाले उनके प्रभावों के बारे में विचारों का आदान-प्रदान किया। इनमें वैश्विक आर्थिक स्थिति, पश्चिम एशिया और खाड़ी क्षेत्र की घटनाएं, ऊर्जा सुरक्षा और एशिया प्रशांत क्षेत्र में प्रवृत्तियां जैसे मुद्दे शामिल थे। सदस्‍यों ने भारत और प्रवासी भारतीयों के बीच तथा भारत और विभिन्‍न देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने के बारे में भी अपने विचार प्रस्‍तुत किये। 

प्रधानमंत्री ने उनके दृष्टिकोण और रचनात्‍मक सुझावों के लिए सदस्‍यों का धन्‍यवाद किया। 

प्रधानमंत्री की प्रवासी वैश्विक सलाहकार परिषद का गठन वर्ष 2009 में हुआ था और हर साल इसकी बैठक होती है। इसका उद्देश्‍य दुनिया भर में फैले विभिन्‍न क्षेत्रों के प्रसिद्ध प्रवासी भारतीयों के ज्ञान और अनुभव का लाभ उठाना है, ताकि भारत और प्रवासी भारतीयों के बीच सम्‍पर्कों के लिए व्‍यापक एजेंडा तैयार किया जा सके।(PIB) 
09-जनवरी-2013 12:52 IST
कोच्चि में प्रवासी वैश्विक सलाहकार परिषद की बैठक
मीणा/राजगोपाल/गीता-97

Sunday, January 6, 2013

सिक्किम की सुगंध-टेमी चाय

03-जनवरी-2013 14:58 IST
दुनिया भर के चाय प्रेमियों का दिल जीत लिया 
टेमी चाय पर विशेष लेख                                                         * खगेन्‍द्रमणि प्रधान
                                                                                                                                  Courtesy Photo
आकर्षक और भव्‍य माउंट कंचन ज़ोंगा की पृ‍ष्‍ठभूमि में तीस्‍ता नदी की सुहावनी समीर के साथ सिक्किम हर सुबह टेमी चाय का आनंद लेता है। 4500 से 6,316 फुट की ऊंचाई पर फैली ढलान वाली 180 हेक्‍टेयर भूमि में टेमी चाय के बागान हैं, जहां बहुत ही बढ़िया परम्‍परागत चाय की पैदावार होती है, जिसकी चाय के कदरदान तारीफ करते नहीं थकते।
    टेमी चाय बागान की स्‍थापना सिक्किम के पूर्व नरेश चोग्‍याल के शासनकाल में 1969 में हुई थी और बड़े पैमाने पर इसका उत्‍पादन 1977 में शुरू हुआ। चाय बागान के रोजमर्रा के काम-काज को व्‍यवस्थित रखने के लिए 1974 में चाय बोर्ड की स्‍थापना की गई और बाद में यह सिक्किम सरकार के अंतर्गत उद्योग विभाग की सहायक कम्‍पनी बन गई। टेमी चाय से जहां एक ओर 4 हजार से अधिक श्रमिकों और 30 कर्मचारियों को सीधे रोजगार मिलता है, वहीं यह कम्‍पनी सरकारी क्षेत्र में रोजगार प्रदान करने वाली एक बड़ी कम्‍पनी बन गई है।
    हल्‍की ढलान वाली यह भूमि तेंदोंग पर्वत श्रृंखला से शुरू होती है। 30-50 प्रतिशत ढलान वाली दुम्‍मट मिट्टी की यह भूमि चाय बागान के लिए बहुत ही उपयुक्‍त है और यहां साल में लगभग 100 टन चाय की पैदावार होती है। यदि बड़े चाय बागानों से मुकाबला किया जाए, तो यह पैदावार बहुत ज्‍यादा नहीं है, लेकिन इसकी गुणवत्‍ता और सुगंध ने भारत और दुनिया भर के चाय प्रेमियों का दिल जीत लिया है।
    टेमी चाय बागान में पैदा हुई चाय को ''टेमी चाय'' जैसे कई ब्रांड नामों से पैक किया जाता है, जो सबसे बढ़िया क्‍वालिटी की चाय होती है, जिसमें सुनहरी फूलों जैसी नारंगी झलक वाली बढि़या काली चाय होती है। इसके बाद दूसरी बढ़िया चाय का लोकप्रिय ब्रांड नाम है 'सिक्किम सोलजा' और उसके बाद 'मिस्‍टीक चाय' और 'कंचनजंगा' चाय का नाम आता है। इसे 'ऑर्थोडोक्‍स डस्‍ट टी' के नाम से बेचा जाता है। चाय की लगभग 70 प्रतिशत पैदावार अधिकृत दलाल के माध्‍यम से कोलकाता में सार्वजनिक नीलामी से बेची जाती है और बा‍की की चाय के रिटेल (खुदरा बिक्री के लिए) पैकेट बनाए जाते हैं और स्‍थानीय बाजार में बेचे जाते हैं।
    चाय बागान की भूमि की भौगोलिक स्थिति और चाय के पौधों को जैविक खाद से पोषित करने से इस चाय बागान में पैदा होने वाली चाय के पत्‍तों की कीमत और सुगंध और बढ़ जाती है।
    टेमी चाय बागान ने स्विटज़रलैंड की बाजार नियंत्रण से संबंधित संस्‍था-आईएमओ  के निर्देशों का पालन किया और पर्यवेक्षण की अवधि पूरी होने के बाद आईएमओ इंडिया ने, जो आईएमओ स्विटज़रलैंड का सदस्‍य समूह है, 2008 में टेमी चाय बागान को 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक का प्रमाण पत्र दिया। इसके अलावा खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली के अंतर्गत भी यह आईएसओ-22,000 मानक के अनुसार एचएसीसीपी द्वारा भी परमाणीकृत चाय बागान है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि बाजार पहुंचने वाला उत्‍पाद उत्‍तम गुणवत्‍ता वाला है। यह भी उल्‍लेखनीय है कि टेमी चाय बागान को लगातार दो वर्षों से भारतीय चाय बोर्ड ने भी अखिल भारतीय गुणवत्‍ता पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया है।
    चाय उत्‍पादन की पूरी प्रक्रिया को परंपरागत से ऑर्गेनिक में बदलने से न केवल इसके लिए अंतर्राष्‍ट्रीय बाजार में मांग बढ़ी है, बल्कि सिक्किम जाने वाले पर्यटक भी बड़ी संख्‍या में इसकी मांग करते हैं। चाय की ऑर्गेनिक खेती के लिए जैविक खाद और वर्मिन-कम्‍पोस्‍ट खाद, नीम और अरंण्‍डी की बट्टियों के रूप में कीटनाशक भी उपलब्‍ध होते हैं। चाय बागान के पास लगभग 100 एकड़ वन भूमि भी है, जिससे बड़ी मात्रा में चाय बागान के लिए जैविक खाद-पदार्थों की पूर्ति हो जाती है, जो इसे आवश्‍यक संसाधनों की दृष्टि से आत्‍मनिर्भर बनाता है।
    खेती में रासायनिक खादों के इस्‍तेमाल को छोड़कर पैदावार के ऑर्गेनिक तरीके अपनाने से न केवल टेमी चाय बागान की उत्‍पादन लागत कम हुई है, बल्कि हानिकारक रसायनों से मुक्‍त ऑर्गेनिक पैदावार को पसंद करने वालों का एक बहुत बड़ा बाजार भी मिल गया है। टेमी चाय बोर्ड को अपनी सफलता पर गर्व है और वह सरकारी राजस्‍व में भी पर्याप्‍त योगदान दे रहा है।
    जर्मनी, ब्रिटेन, अमरीका और जापान टेमी चाय के प्रमुख खरीददार हैं। ग्रीन टी की बढ़ती मांग को देखते हुए इसमें विविधता लाने के कई प्रयास किए जा रहे है और इसकी कीमत बढ़ाने के लिए अधिक आकर्षक डिज़ाइन वाले पैकेट तैयार किए जा रहे हैं। इसके अलावा सिक्किम की इस चाय के लिए विदेशी बाजार में सीधे खरीददार बनाने के भी प्रयास किए जा रहे हैं। चाय बोर्ड ने कनाडा और जापान को ऑर्गेनिक चाय के छोटे पैकेट सीधे निर्यात करना भी शुरू कर दिया है, जहां इसके लिए स्‍पर्धात्‍मक और आकर्षक दाम मिल रहे हैं।
    चाय बागान के विस्‍तार के लिए उपयुक्‍त भूमि न मिलने से इसके क्षेत्र का विस्‍तार नहीं हो पा रहा है। लेकिन टेमी चाय बागान छोटे किसानों और उत्पादकों को बढ़िया पौध और अन्‍य तकनीकी जानकारी की सहायता उपलब्‍ध करा रहा है। बागान की नर्सरी में बढ़िया पौध तैयार की जाती है, जिसका वितरण राज्‍य के छोटे चाय बागानों की सहकारिताओं में किया जाता है।
    हालांकि टेमी चाय चाय पारखियों की उम्‍मीदों पर खरी उतरी है, फिर भी चाय बागान की जलवायु संबंधी परिस्थितियों को देखते हुए यहां अधिक कीमत वाली और बढि़या चाय पत्‍तों वाली पैदावार की अभी भी गुंजायश है।
            (PIB)       (पत्र सूचना कार्यालय विशेष लेख)सिक्किम की सुगंध-टेमी चाय
*फ्रीलांस पत्रकार
नोट: लेखक द्वारा इस लेख में व्‍यक्‍त किए गए विचार आवश्‍यक नहीं कि पत्र सूचना कार्यालय के विचारों से मेल खाते हों।

 सिक्किम स्क्रीन में भी देखें 
  
मीणा/राजगोपाल/लक्ष्‍मी-03

एक बच्‍चा एक लैम्‍प:

04-जनवरी-2013 19:35 IST
स्‍कूल के दिनों को रोशन करने की एक परियोजना
विशेष लेख                                                  *मनीष देसाई**भावना गोखले
ग्रामीण परिदृश्‍य में बदलाव

पिछले दो दशकों के दौरान भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कई प्रकार के बदलाव आए हैं। वहां बेहतर सड़क संपर्क के साथ ही स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं में महत्‍वपूर्ण सुधार, साक्षरता में सुधार और हर किसी के लिए मोबाइल फोन की सुविधा देखने को मिलती हैं। किंतु बिजली की आपूर्ति में उतना सुधार देखने को नहीं मिलता है। देश के अधिकांश राज्‍यों में 12 से लेकर 14 घंटे तक बिजली नहीं मिलना एक सामान्‍य बात है। जब इतने लम्‍बे समय तक बिजली न मिले तो इससे स्‍कूल जाने वाले बच्‍चे सबसे अधिक प्रभावित होने वालों में शामिल हैं।
     बिजली नहीं रहने के कारण छात्र या तो पढ़ाई नहीं कर पाते या फिर वे मिट्टी के तेल वाले लैम्‍प की रोशनी में पढ़ाई करते हैं। यह स्थिति अच्‍छी नहीं है। बिजली की आपूर्ति में कमी होने के कारण देश के 12 करोड़ से अधिक बच्‍चे अपनी पढ़ाई के लिए मिट्टी के तेल वाले लैम्‍प पर निर्भर करते हैं। मिट्टी के तेल वाले लैम्‍प से उतनी रोशनी नहीं होती, जिससे बच्‍चे आराम से पढ़ाई कर सकें। उससे कार्बन मोनोक्‍साइड गैस भी उत्‍सर्जित होती है, जो बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए नुकसानदायक है। मिट्टी का तेल लीक होने की स्थिति में आग लगने का भी खतरा रहता है। अंतत: इसका परिणाम यह होता है कि छात्र अपनी पढ़ाई के साथ तालमेल रखने में असफल रहते हैं और जब वे उतीर्ण होते हैं, तो उनमें रोजगार के अवसरों तक पहुंचने के लिए आत्‍मविश्‍वास में कमी होती है और उनका कौशल स्‍तर भी कम होता है।
     इसलिए बच्‍चों की पढ़ाई के दौरान रोशनी की उपलब्‍धता काफी महत्‍वपूर्ण है। इसलिए हम इस समस्‍या का किस प्रकार समाधान करें ?

लेड अध्‍ययन लैम्‍प – सर्वोत्‍तम समाधान
     सभी संभव समाधानों के बीच सौर ऊर्जा पर आधारित सौर लैम्‍प सबसे सस्‍ता और सबसे त्‍वरित समाधान के रूप में दिखाई पड़ता है।
Courtesy Photo
उभरती हुई लेड रोशनी की प्रौद्योगिकी, जो एक सेमीकंडक्‍टर पर आधारित है, वह रोशनी की समस्‍या से जुड़ा एक बेहतरीन और सरल समाधान है। श्‍वेत लेड क्रांति के बल पर अब पढ़ाई के उद्देश्‍य के लिए एक उपयुक्‍त और सरल समाधान प्रस्‍तुत हो रहा है, जो एक चौथाई वाट से भी कम बिजली लेकर एक लैम्‍प की तुलना में 10 से लेकर 50 गुना अधिक रोशनी देता है।
हैदराबाद स्थित स्‍वैच्छिक संगठन – थ्राइव एनर्जी टेक्‍नोलॉजिज ने एक सौर अध्‍ययन लैम्‍प वि‍कसित किया है, जो अध्‍ययन के उद्देश्‍य की पूर्ति के लिए पर्याप्‍त रोशनी प्रदान करता है। एक बार पूरा चार्ज करने पर इससे प्रतिदिन सात से आठ घंटे तक रोशनी मिलती है।
सौर लेड की विशेषताएं
*एक लैम्‍प द्वारा दो से तीन लक्‍स रोशनी की तुलना में यह लगभग 150 लक्‍स रोशनी प्रदान करता है।
*इसमें निकेल धातु वाली हाइड्राइड की बैट्री का इस्‍तेमाल होता है, जिसे 0.5 वाट वाले सोलर पैनल के जरिए अथवा ए.सी मोबाइल चार्जर या फिर सौर ऊर्जा आधारित चार्जिंग प्रणाली के जरिए चार्ज किया जा सकता है।
*इसमें विश्‍व के सर्वोत्‍तम लेड और एक उन्‍नत आईसी का इस्‍तेमाल होता है, जो कई वर्षों के इस्‍तेमाल के बाद भी निरंतर और बढि़या रोशनी देता है।
इस परियोजना से जुड़े आई.आई.टी बम्‍बई के रवि तेजवानी का कहना है – ‘सामान्‍यत: जो लैम्‍प तैयार किए जाते हैं, वे ग्रामीण पर्यावरण के लिए उतना उपयुक्‍त साबित नहीं होते। प्रौद्योगिकी और प्रक्रियाओं में नवीनता के माध्‍यम से ये लैम्‍प व्‍यापारिक तौर पर बाजार में उपलब्‍ध समकक्ष गुणवत्‍ता वाले लैम्‍पों की तुलना में 40 प्रतिशत तक किफायती हैं।’
खरगौन का प्रयोग : एक बच्‍चा एक लैम्‍प
  
‘एक बच्‍चा एक लैम्‍प’ नामक परियोजना दक्षिण-पश्चिम मध्‍य प्रदेश के खरगौन जिले में शुरू की गई। इसका उद्देश्‍य जिले के प्रत्‍येक 100 स्‍कूलों के सौ-सौ बच्‍चों - कुल मिलाकर 10,000 बच्‍चों, को सोलर लैम्‍प प्रदान करना है। झिरन्‍या और भगवानपुरा तहसील के 100 स्‍कूलों को भी इस योजना में शामिल किए जाने का प्रस्‍ताव है, जो सबसे अधिक पिछड़े क्षेत्रों में शामिल हैं। मुख्‍य योजना जिले में 1,00,000 लैम्‍पों का वितरण करना है।
  मध्‍य प्रदेश के खरगौन जिले को एक शीर्ष जिले के रूप में चुना गया है, क्‍योंकि 84 प्रतिशत से अधिक जनसंख्‍या गांव में निवास करती है और इसमें से 40 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति श्रेणी की है। रोशनी के लिए 40 प्रतिशत से अधिक लोग मिट्टी के तेल का इस्‍तेमाल करते हैं। मध्‍य प्रदेश में प्रति व्‍यक्ति बिजली का उपभोग मात्र लगभग 330 यूनिट प्रतिवर्ष है, जबकि भारत के लिए यह 750 यूनिट है और विश्‍वभर के लिए यह औसत 2000 यूनिट है। खरगौन जिले में स्थित एजुकेशन पार्क की ओर से इस परियोजना को कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसमें थ्राइव एनर्जी टेक्‍नोलॉजिज, हैदराबाद सहयोग कर रहा है। अब तक 4500 से भी अधिक सौर लेड लैम्‍प वितरित किए गए हैं।  इसका उद्देश्‍य सिर्फ वितरण करना है।
परियोजना की कार्य प्रणाली
 छात्रों के लिए सौर लैम्‍प की रियायती लागत केवल 200 रूपये है, हालांकि बाजार में इसकी कीमत 580 रूपये है। श्री तेजवानी का कहना है कि इन सौर लैम्‍पों को स्‍कूल के एक ही स्‍थान पर चार्ज किया जाएगा, जबकि छात्रों की पढ़ाई स्‍कूल के टैरेस में स्‍थापित एक साझा सौर पीवी मॉड्यूल के जरिए कराई जाएगी। दिन में इन लैम्‍पों को चार्ज किया जाएगा और 4 से 5 घंटे के चार्ज होने के बाद ये 2-3 दिनों तक रात के दौरान 2-3 घंटे तक रोशन प्रदान करने में सक्षम होंगे। जिन छात्रों के पास ये लैम्‍प होंगे, वे इसे घर ले जाकर रात में अपनी पढ़ाई करेंगे। जरूरत होने पर वे स्‍कूल ले जाकर इसे फिर से चार्ज कर सकेंगे।
परियोजना के लाभ    एक बार सफलतापूर्वक कार्यान्वित होने पर समाज के लिए यह परियोजना प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष रूप से लाभकारी होगी।
*10,000 छात्रों को सौर लैम्‍प मिल जाने पर इसके परिणामस्‍वरूप अध्‍ययन के लिए प्रतिवर्ष लगभग 30,00,000 अतिरिक्‍त घंटे उपलब्‍ध होंगे।
*इससे माता-पिता, शिक्षकों और प्रशासकों के बीच जागरूकता आएगी और लोग अपना-अपना सौर लैम्‍प प्राप्‍त करने के लिए प्रोत्‍साहित होंगे। घर में इस्‍तेमाल के लिए एक अन्‍य घरेलू लैम्‍प का मॉडल भी उपलब्‍ध है।
*इससे मिट्टी के तेल की मांग में कमी होगी, जिसकी आपूर्ति पहले से ही कम हो रही है और इसके बदले देश के लिए बहुमूल्‍य विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
*इससे मिट्टी के तेल वाले लैम्‍पों के इस्‍तेमाल से बच्‍चों को होने वाले स्‍वास्‍थ्‍य के खतरे में भी कमी आएगी।
*इस परियोजना के क्रियान्‍वयन के परिणामस्‍वरूप प्रतिवर्ष 15,00,000 टन कार्बनडाईऑक्‍साइड के उत्‍सर्जन में भी कमी आएगी।
इस परियोजना का उद्देश्‍य मध्‍य प्रदेश के सामाजिक जीवन पर होने वाले प्रभाव को दर्शाना और सरकार को रोशनी के लिए सौर लैम्‍पों को अपनाने हेतु प्रोत्‍साहित करना है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोशनी के लिए सबसे अधिक किफायती समाधान है।
सौर ऊर्जा पर भारत का जोर    सरकार ने सौर ऊर्जा के महत्‍व को स्‍वीकार किया है और जवाहरलाल नेहरू राष्‍ट्रीय सौर मिशन नामक कार्यक्रम शुरू किया है। इस मिशन का तात्‍कालिक लक्ष्‍य देश में केंद्रित और विकेंद्रित - दोनों स्‍तरों पर सौर प्रौद्योगिकी को पहुंचाने के लिए एक वातावरण तैयार करने पर जोर देना है। इस क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से आई.आई.टी. बम्‍बई में राष्‍ट्रीय फोटोवोल्‍टाइक अनुसंधान और शिक्षा केंद्र (एनसीपीआरई) स्‍थापित किया गया है, ताकि आधारभूत और उन्‍नत अनुसंधान संबंधी गतिविधियां संचालित हो सके। एनसीपीआरई का उद्देश्‍य सौर पीवी को एक किफायती और प्रासंगिक प्रौद्योगिकी विकल्‍प बनाना है।  (PIB) (पसूका विशेष लेख)
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*निदेशक (मीडिया), पत्र सूचना कार्यालय, मुंबई
**मीडिया और संचार अधिकारी (मीडिया), पत्र सूचना कार्यालय, मुंबई


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